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कविता

मछलियाँ

प्रतिभा कटियार


देह की नदी में
तैरती फिरती हैं
कामनाएँ
इच्छाएँ
मछलियों की मानिंद
रंग-बिरंगी मछलियाँ
नटखट शरारती
मछलियाँ
तुम्हें मछलियाँ बहुत पसंद हैं
मुझे भी
मुझे जिंदा
तैरती मछलियाँ
तुम्हें भुनी हुई
लजीज मछलियाँ
प्यार से पाली-पोसी
खूबसूरत मछलियाँ
तुम्हारी तृप्ति की खातिर
लजीज मछलियों में
तब्दील होकर
देह की तश्तरी में
सज जाती हैं
तुम तृप्त होते हो
मेरी देह
मछलियों की
शोकाकुल याद लिए
नींद की कब्र के बाहर
बरसती है आँखों से
ठीक उस वक्त
जब नींद बरसती है
तुम्हारी देह पर...
मछलियाँ तुम्हें भी पसंद हैं
और मुझे भी...
 


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